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13,सितम्बर 2013, जब नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को भारतीय जनता पार्टी के द्वारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था| तब राजनितिक पंडित कहते थे कि भाजपा वमुश्किल 250 सीटे ला पायेगी | तब यह सच भी लगता था | फिर आया चार राज्यों में विधानसभा चुनाव तो कहा गया कि यह चुनाव मोदी का सेमीफाइनल हैं, और इस चुनाव में पता चल जायेगा कि मोदी भाजपा को सत्ता दिलाते हैं या नही ? इन चार राज्यों के चुनाव को मोदी के चहरे पर लड़ा गया और जब चुनाव परिणाम आयें तो भाजपा ने 3-1 से इस सेमीफाइनल को जीता |दिल्ली की जीत से बस चंद कदम दूर रह गई | इस चुनाव परिणाम आने के बाद राजनितिक पंडितो को यह बात मन ही मन काट रही थी शायद वह इसे पचा नही पा रहे थे, इस बार वह कहने लगे कि असली परीक्षा तो 2014 का लोकसभा चुनाव हैं, इस चुनाव में पता चलेगा की मोदी की कितनी लोकप्रियता हैं और जनता किसके साथ हैं ? साथ ही साथ वह यह भी कह रहे थे कि फिर भी भाजपा (NDA ) बहुमत से बहुत दूर रह जाएगी और अन्य पार्टियों के समर्थन कि जरुरत पड़ेगी | लेकिन वह दिन भी कहाँ दूर था, समय के साथ वह दिन आ ही गया | लोकसभा के चुनाव परिणाम घोषित हुए| भाजपा से अकेले दम पर बहुमत के आकडे को पार किया तथा NDA के साथ मिलकर बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर 335 सीटों के साथ भाजपा ने अपनी केंद्र में सरकार बनाई | साथ ही साथ राजनितिक पंडितों ने एक बार फिर से मुहँ की खाई | लेकिन राजनितिक पंडित कहा हार मानने वाले थे, उनका तो पेशा ही संकट में पड़ गया था | और वे मोदी की लोकप्रियता (मोदी लहर ) का कम होने का इंतजार करने लगे | मोदी लहर कहाँ कम हो रही थी,वह तो “मोदी कहर” का रूप ले चुकी थी! मोदी सरकार बनने के बाद एक बार फिर से एक के बाद एक चार राज्यों के चुनाव आये | इन चुनावो को फिर से एक बार मोदी के कामकाज व लोकप्रियता से जोड़ दिया इन राजनितिक पंडितो ने | उधर मोदी भी कहा हार मानने वाले थे, निकल पड़े इन राजनितिक पंडितो को एक बार फिर से सबक सिखाने और भाजपा को एक और सत्ता की सीडी पर चड़ाने| एक के बाद एक जीत हासिल की पहले हरियाणा जहाँ पर पहले भाजपा की 4 सीटे थी | वहां पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई उसके बाद महाराष्ट्र, झारखण्ड और आखिर में जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा वोट पाकर, राज्य में नंबर एक पार्टी बनी| एक बार फिर इन राजनितिक पंडितो को आइना दिखाया | इसी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव को फिर से मोदी के नाम से जोड़ कर यह एक बार फिर से अपनी हार सुनिश्चित कर रहे हैं | करें भी क्यों न इनका काम हैं हारना,पहले इनका काम होता था कहना!
मुझे नही लगता कि ये कभी भी मोदी के परीक्षा को खत्म होने देंगे! इसके बाद कहेंगे की बिहार तो बहुत ही मुश्किल हैं मोदी के लिए जीतना, फिर पश्चिम-बंगाल, उत्तरप्रदेश| ये कहाँ चुप बैठने वाले हैं | लेकिन सवाल यह हैं कि चुनाव भाजपा मिलकर लडती हैं और जीतने के लिए लड़ती हैं, फिर मोदी की परीक्षा ही क्यों ? लेकिन अन्य पार्टी क्या सिर्फ मनोरंजन के लिए लड़ती हैं ? उनकी परीक्षा कब ?
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