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अर्थशास्त्र में एक नियम हैं कि आप जब भी किसी वस्तु का उपभोग जरुरत से ज्यादा करते हैं तो फिर एक सीमा के बाद उसका विपरीत असर पड़ता हैं , शायद कुछ इसी तरह का नियम भौतिक विज्ञान में भी हैं कि कोई भी वस्तु जितनी रफ़्तार से ऊपर जाती हैं | उससे ज्यादा रफ़्तार से नीचे आती हैं | लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि अर्थशास्त्र और भौतिक विज्ञान का राजनीती से क्या मतलब हैं ? इसे जानने के लिए हमें कुछ समय पीछे जाना पड़ेगा | जब पूरा देश भ्रष्टाचार के बोझ से परेशान था | और चारो ओर केवल भ्रष्टाचार के विषय में ही सुनाई और दिखाई पड़ता था | तब इसी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर एक नई नवेली पार्टी का जन्म हुआ था | जिसका नाम पड़ा “आम आदमी पार्टी” लेकिन उस समय क्या आम, क्या खास सभी चल दिए इस पार्टी के साथ | इस देश की जनता को लगा कि इस देश से भ्रष्टाचार ख़त्म हो सकता हैं और यह उम्मीद जगाई इस पार्टी के नेता श्री अरविन्द केजरीवाल ने |
इस पार्टी के बनाने के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव आया | यह इस पार्टी की पहली परीक्षा थी | किसी ने भी इस नई नवेली पार्टी को 5 या 10 से ज्यादा सीटे जीतने की उम्मीद नहीं की थी | लेकिन इस पार्टी ने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए 28 सीटें जीतकर एक शानदार शुरुआत की और कांग्रेस के साथ हाथ मिलकर दिल्ली में गठबंधन की सरकार बना ली | लेकिन उसका असर ये हुआ के आप के नेता 49 दिनों में ही सरकार छोड़ कर भाग गये और दिल्ली को उसी के हाल पर छोड़ दिया गया | जब इसका जबाब माँगा तो आप के नेताओं का कहना था कि हम तो ये सोच रहे थे कि दिल्ली में जल्द ही फिर से चुनाव होंगे और दिल्ली की जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत देंगी | और यह सच भी हुआ देर से ही सही मगर दिल्ली की जनता ने इतना बड़ा बहुमत दिया की अब पार्टी के लिए संभालना मुश्किल हो रहा है | इस बहुमत का असर ये हुआ कि दिल्ली को तो बहुत की सरकार मिल गयी मगर पार्टी में बहुमत की लड़ाई शुरू हो गयी | आरोप तो पार्टी पर पहले भी लगे मगर इस बार ये लड़ाई अपने अंतिम चरम पर हैं | क्योकि इस बार पार्टी की तरफ से भ्रष्टाचार से मोर्चा लेने वाले तथा पार्टी का दिमाग माने जाने वाले नेता प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव अरविन्द केजरीवाल के निशाने पर हैं | इस जंग की शुरुआत तो कई महीनों पहले हो गयी थी परन्तु ये अन्दर ही अंदर उफान ले रही थी | अब ये जंग सारी सीमा पर करती हुई सड़क पर अपना विकराल रूप ले चुकी हैं | बड़ा सवाल ये उठता हैं कि अपनी पार्टी को सभी राजनितिक पार्टियों से अलग कहने वाली ये आम आदमी पार्टी अन्य राजनितिक पार्टियों से कैसे अलग हैं ? जिस तरह सभी पार्टियों में विरोध के स्वर को किनारे कर दिया जाता हैं या उसे पार्टी से निकल दिया जाता हैं | इसी तरह का कार्य ये आम आदमी पार्टी भी कर रही हैं | विरोधी गुट का कहना हैं कि अरविन्द केजरीवाल पार्टी पर अपना और अपने साथियों के साथ मिलकर पार्टी में एकाधिकार जमाने की कोशिश कर रहे थे जोकि ये पार्टी के संबिधान के खिलाप हैं | जब इस बात का विरोध हुआ तो विरोधी गुट को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया | लगातार आ रहे स्टिंग से एक बात तो स्पष्ट हो रही हैं कि आम आदमी पार्टी भी पारंपरिक राजनीती से अलग नही हैं जिसमे जोड़-तोड़ से सरकार बनाना अथवा अपने की नेताओं को नज़रबंद करना वो सब कुछ शामिल हैं , जिसके खिलाफ ये पार्टी खड़ी हुई थी | अगर हम याद करें तो पायेगें कि जब केजरीवाल ने पहली बार रामलीला मैंदान में शपथग्रहण भाषण में कहा था कि हमें कभी अहंकार नही करना और कोई ऐसा काम नही करना की हमारे खिलाफ किसी नई पार्टी को जन्म लेना पड़े | अब अटकलें तो ये भी लगाई जा रही हैं कि अप्रैल में योगेन्द्र व् प्रशांत ने अपने समर्थकों की मीटिंग बुलाई हैं जिसमें एक नई पार्टी का ऐलान हो सकता हैं | अगर ये लोग नई पार्टी का ऐलान करते हैं तो केजरीवाल को मुश्किलों में डाल सकते हैं | जिससे उनकों आगे की राजनीती मुश्किल भरी हो सकती हैं | ढाई साल पहले जितनी जल्दी इस पार्टी का उभार हुआ था क्या उतनी जल्दी ही धरातल पर आ जाएगी ? या फिर केजरीवाल का सीमा से ज्यादा पार्टी में अपना बहुमत बनाना पार्टी को धरातल पर ले जाएगा ? तो फिर ये कहना कहाँ गलत हैं कि ये पार्टी अर्थशास्त्र और भौतिक विज्ञान के नियमों में फँस गयी हैं |
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